Meet (part -1) in Hindi Love Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | मीत (भाग -१)

Featured Books
Categories
Share

मीत (भाग -१)

मुझें गाने सुनते हुए काम करने की आदत हैं । आज भीं जब मैं अपने कमरें की सफ़ाई कर रहीं थीं तब आदतन मैंने रेडियो ऑन कर लिया था।

उम्र का दौर था या इश्क़ का जोर तय करना मुश्किल था पर जब भीं बालासुब्रमण्यम की आवाज़ में कोई गीत सुनती थीं तो दिल करता उनके गाये गीतों को सुनकर उम्र गुजार दूँ ।

“तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना… मैंने नहीं जाना… तूने नहीं जाना…”

आज गीत औऱ गायक की मखमली आवाज़ जिसकी मैं दीवानी थीं ,,चुभ रहें थें किसी शूल की तरह । आज जब विविध भारती ट्यून किया औऱ उस पर यह गीत बजने लगा तो अचानक किसी का चेहरा जहन में आ गया , मुझें लगा जैसे मेरी रगों में बहता सारा खून सुख गया। बिन पानी के जैसे मछली तड़पती हैं ठीक वैसे ही मेरा मन तड़प उठा। मैंने तुंरत रेडियों बंद कर दिया।

कमरें में बिखरे सामान के बीचो-बीच मैं धम्म से बैठ गई। कमरें के सामान से ज़्यादा बिखरा हुआ मेरा मन था , जिसे समेटने की , समझाने की मैंने बहुत कोशिश की । अंदर से उठ रहीं हुक , पीड़ा औऱ सवालों की ज्वाला को शांत करने का कोई भी उपाय मेरे पास नहीं था। आँखों से आँसू की बूंदे छलक आई।

काश ! मेरे अंतर्मन के द्वंद से मैं जीत पाती। मेरा मन संसद सदन की तरह हो गया था जहाँ प्रश्नकाल का सत्र चल रहा था। हर तरफ़ से प्रश्नों का शोर ,,औऱ शोर में एक ही सवाल - मीत आख़िर तुमनें ऐसा क्यों किया..?

"मीत"....दोस्त , मित्र ,साथी यहीं होता हैं न इसका अर्थ ? पर वह इन अर्थों के बिल्कुल विपरीत कैसे हो गया ?

हल्की बूंदाबांदी होने लगीं थीं । सुबह से ही मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ था बिल्कुल मेरे मूड की तरह । आज बारिश की बूंदे भी किसी धारदार चाक़ू सी जान पड़ रहीं थीं , जो मन को औऱ अधिक घायल कर रहीं थीं ।

अजीब हैं न ये मन जब किसी के साथ होता हैं तो किसी मासूम बच्चें सा बन जाता हैं , फिर न किसी से कोई गिला होता हैं न कोई शिकवा । हर बात मन को लुभाती हैं चाहें वो संगीत सुर लहरियां हो या फिर बूंद-बूंद बरसती बारिश। आज वहीं मन विकल हैं औऱ उसे कुछ भी नहीं सुहाता।

बाहर अचानक शांत बादलों को चीरते हुए बिजली ठीक ऐसे कड़की ,,जैसे मेरे शांत मन को चीरते हुए मितेश की बात हो, शब्दों की गूंज अब भी कानों में सुनाई पड़ती हैं।

मितेश औऱ मैं एक ही ऑफिस में काम करते हैं , पिछले दो साल से हम एकदूसरे को जानतें हैं। हमउम्र हैं , एकदूसरे के खयालात भी मिलते - जुलते हैं..इसलिए कब दोस्त बन गए पता ही नहीं चला। आज के व्यस्तताभरे दौर में जहाँ लोग एकदूसरे को देख भी नहीं पाते ऐसे समय में भी हम दोनों वक़्त मिलते ही एकदूसरे से ख़ूब बातें किया करतें । एक दूसरे की प्रॉब्लम शेयर करतें , खुशियां बाँटते औऱ क़भी बात बेबात पर झगड़ पड़ते । जब साथ नहीं होंते तब फोन पर या मैसेजिंग के जरिए घण्टों बातें किया करतें । हम दोनों ने कितनी ही रातें जागते हुए बातों में बिता दी थीं । कब मितेश "मीत" बन गया ,, कब दोस्ती प्यार में बदल गई ...? पता ही नहीं चला। मैं मीत के साथ अपनी ज़िंदगी के सुनहरे सपने बुनने लगीं थीं । शायद वो भी सपनों की ईमारत बनाता होगा। हम दोंनो ने इतनी रातें बातों में बिता दी थीं कि अब याद भी नहीं कि प्यार का इजहार पहले किसने किया था - मीत ने या मैंने...?

खुशियों की रेलगाड़ी खूबसूरत लम्हों की पटरी पर तेज़ रफ़्तार के साथ दौड़ रहीं थीं अचानक मीत के प्रपोज़ल ने उस पर ब्रेक लगा दिया था..ऐसा ब्रेक जिससे खुशियों की रेलगाड़ी ठहर गई औऱ जिसके अचानक यूं ठहरने से मुझें एक ज़ोर का झटका लगा। मुझें महसूस हुआ जैसे इस झटके से मेरे द्वारा बुने गए सुंदर , सुनहरी सपनें चकनाचूर हों गए ।

शेष भाग जल्दी ही प्रकाशित करूँगी....

कहानी पसन्द आए तो समीक्षा देकर जरूर बताइयेगा...